एक बार की बात है, गोंविदपुर राज्य का एक राजा था वह बहुत ही अच्छा एवं दयालु राजा था। अपने प्रजा के लिए वो कुछ भी करता था वह राजा अपने प्रजा के कहने पर उनके अनुसार चलता था। प्रजाजन राजा पर बहुत विश्वास करत थे, राजा प्रजा का हितक था। वह अपना जीवन ख़ुशी में व्यतीत कर रहे थे।
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एक दिन पड़ोसी मुल्ख के एक राजा की नजर गोविदपुर के राज्य पर पडी। वो उस राज्य की धन संपदा देखकर लोभावित हो गया और उसने उस राज्य को हासिल करने की ठानी। पडोसी राजाने अपने राजदूत के हाथ में पत्र भेजा। उस पत्र में पडोसी राजा ने गोंविदपुर के राजा को दोस्ती का पत्र भिजवाया.. उत्तर में गोंविदपुर के राजा ने पत्र पडा और कहाँ क्या बात है. जो आप मेरी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे है, कल तक तो आप हमसे युद्ध करना चाहते थे, हमारे राज्य को हासिल करना चाहते थे।
पडोसी राजा ने कहाँ इस युद्ध में क्या रखा है.. तुम हमारे पास के राज्य के राजा हो मतलब पडोसी राजा हो.. पडोसी-पडोसी भाई-भाई हुए ना फिर हम आपस में युद्ध क्यू करे, यह कहकर पडोसी राजा गोंविदपुर के राजा को विश्वाश दिलाने की कोसिस कर रहा था। गोंविदपुर का राजा समझ गया था, की वह दोस्ती के आळ में हमारा राज्य हतयाना चाहता है, लेकिन पड़ोसी राजा को गोंविदपुर के राजा एक मोका देना चाहते थे.. उन्होंने दोस्ती का हाथ इसलिए बढाया की मै एक बार उन्हें माफ कर देता हु.. ऐसा कहकर राजा ने उसे दोस्त बना लिया।
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गोंविदपुर और पडोसी राज्य का मेलझोल बढ गया और पडोसी राजा के मनसूबे कामयाब होने लगे। उन्होंने सोचा की हमारी सेना इनकी सेना से कम है इसलिए हम हर बार युद्ध में पराजित होते है। इसलिए हम दोस्ती के आळ में उस राज्य में मिलावटी सामान प्रजा के धान्य भंडार में मिलावट करेंगे वह प्रजा खाकर कमजोर और निर्बल हो जाएगी और हम आसानी से विजय हो जाएगे.. इधर प्रजा को कमजोर बनाने के लिए दूध में मिलावटी सामान मिलाकर बेच रहे थे।
जब सीधी उंगली से घी ना निकले तो उंगली तेळी करना पड़ता है यह कहकर चावल में कंकळ मिलाकर बेचने लगा। यह बात गोंविदपुर के राजा को पता चला और राजा ने तुरंत मिलावटी सामान को बाहर फेक दिया.. पडोसी राजा के इस करतूत पर गोंविदपुर के राजा ने युद्ध के लिए फरमान भिजवाया.. अपनी सेना को लेकर युद्ध के मैदान पर गये और युद्ध प्रारंभ हुआ।
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लगातार पाच दिन तक घमाशान युद्ध चल रहा था.. आखिर में युद्ध समाप्त हुआ और गोंविदपुर के राजा विजयी हुऐ। उसके बाद राजा अपने महल की तरफ जाने लगे तभी अचानक न जाने कहा से एक दुश्मन ने राजा को भाला पेक कर मारा.. राजा को भाला लगने वाला था इतने में ही एक बंदर ने छलाग लगाकर उस भाले को अपने हाथो में पकड़ लिया.. तब से वो बंदर राजा के सात रहने लगा।
राजा को वह बंदर इतना प्रिय लगा की राजा ने उसे अपना सेनापति बना लिया। एक दिन राजा सो रहा था बंदर राजा के कक्ष के बाहर पहरा दे रहा था इतने में मक्खी राजा के कक्ष में जाकर राजा को परेशान करने लगी। राजा ने बंदर से कहा मेरे कक्ष में मक्खी घुस गई है जो मुझे परेशान कर रही है तुम उसे ढूढ़कर भगा दो यह कहकर राजा सो गया।
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बंदर मक्खी को ढूढने लगा, मक्खी पहले राजा के आसपास मंडराने लगी और राजा के कान के पास घुन घुनाने लगी। बंदर ने उसे हाथ मार के भगाया फिर भी मक्खी नही मानी वो राजा के हाथ पर बैठ गई बंदर को गुस्सा आया उसने अपनी तलवार निकाली और उसे भगाने गया। मक्खी फिर उडकर राजा के नाक पर बैठ गई, बंदर को गुस्सा आया और उसने तलवार हाथ में ली और जैसे ही तलवार से मक्खी उड़ाने के लिये चलाई मक्खी तो उड़ गई लेकिन राजा की नाक तलवार चलाने से कट गई।
मक्खी को मारने के चक्कर में बंदर ने राजा की नाक काट दी। राजा दर्द से कराते हुए चिल्लाया और बोला सिफाईयो इस बंदर को मार दो.. और राजा के सिफाईयो ने बन्दर की गर्दन काटकर मार डाला।
सीख
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है की मुर्ख के संगत में रहकर आदमी मुर्ख बन जाता है। राजाने बंदर को अपना सेनापति बना कर अपने मुर्खता का परिणाम अपना नाक गवा कर देना पडा।यह भी जरुर पढ़े