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कृष्णा नदी दक्षिण भारत की नदी है।
माँ कृष्णा का उद्गम
बंबई के नैऋत्य में 145 किलोमीटर पर पश्चिम घाट में कृष्णा नदी का उद्गम हुआ है। महाबदेश्वर कृष्णा नदी के उद्गम के पास का थंड हवा का गंतव्य, महाराष्ट्र में बहुत प्रसिद्ध है।
एक बहुत ही धबधबे से कृष्णा का उद्गम होता है। इस धबधबा का मुख गौमुख जैसा है। इस धबधबा में हमेशा पानी बहते रहता है। इसलिए नदी में भी पानी बहते रहता है। कृष्णा का धबधबा जिस जगह पर है वो जगह पर्यटन स्थल बन चुकी है वहा पर देश - विदेश के लोग देखने के लिए आते है। भीमा और तुंगभद्र, कृष्णा नदी की उपनदिया है। भीमा, तुंगभद्रा नदी को उपनदियाँ है और भीमा,तुंगभद्रा के पानी के कारन कृष्णा का प्रवाह बहुत ही तेज बहते रहता है।
कृष्णा महाराष्ट्र से निकल के आंध्रप्रदेश में प्रवेश करती है। आंध्रप्रदेश में प्रवेश करने के बाद उसे तुंगभद्रा मिलती है। हैदराबाद के पास कृष्णा को मुस नाम की उपनदी मिलती है। मुस नदी के तट पर गोवळकोंडा किला है। प्राचीन काल में यह ठिकान हिरे के लिए बहुत ही प्रसिद्ध था।
रायपुर के पास कृष्णा पश्चिम घाट के पर्वत से उतर के विजयवाड़ा की और जाती है। विजयवाड़ा यह ठिकान पर्वतीय प्रदेश का होने के कारन विजयवाड़ा से आगे मैदानी भाग में आने के कारण उसका प्रवाह संथ होता है। विजयवाड़ा से निकली हुई कृष्णा नदी अमरावती, धरणीकोटा,नागार्जुनकोंडा और श्रीशैलम से बहते-बहते समुन्दर को मिलती है।विजयवाड़ा से ६0-70 किलोमीटर दूरीपर कृष्णा का प्रवाह दो भागो में बहने लगता है और मुसलीपट्म के पास समुन्दर को मिलती है।
आंध्रप्रदेश में कृष्णा और गोदावरी का पानी दिया जाता है।
'' नागार्जुनसागर '' जलाशय विजयवाड़ा और जागार्जुनकोंडा के कृष्णा नदी के तट पर है। इस बांध की लम्बाई 1140 मिटर और नदी के तट से 6 मीटर उचा है। पानी से बिजली का निर्माण किया जाता है और नहर के द्वारा पानी खेती के लिए दिया जाता है। '' नागर्जुनसागर '' बांध देश का सबसे उचा और मजबूत बांध है।
कृष्णा नदी के तट पर विजयवाड़ा, अमरावती, धरणीकोटा, नागार्जुनकोंडा और श्रीशैलम यह बहुत धार्मिक पर्यटन स्थल है।
विजयवाड़ा के पहाड़ियों पर अर्जुन ने घोर तप करके भगवान शिवशंकर को प्रसन्न करके दिव्य शस्त्र प्राप्त किया था।
अमरावती इंद्रदेव ने बसाई हुई नगरी है ऐसा प्राचीनकाल में बताया गया है। अमरावती के पास में धरणीकोटा नाम का बहुत ही प्रसिद्ध ठिकान है। प्राचीन काल में सातवाहन राजा की राजधानी थी। बौद्धकाल में बहुत विद्वान पंडितों का निवास इस शहर में रहता था। यह शहर आज भी बौद्ध संस्कृति का केंद्र है। नागार्जुनकोंडा बौद्धकाल का प्रसिद्ध ठिकान है। बांध बांधने के लिए खुदाई की गई तब यहाँ से पुरातनकाल के कुछ वस्तुयें मिली और यह वस्तुएं नागार्जुनकोंडा के वस्तु संग्रालय में है।
श्रीशैलम यह बहुत ही प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहाँ का मल्लिकार्जुन मंदिर, यह मंदिर बारा ज्योतिर्लिंग से एक है। दक्षिण दिग्विज के समय शिवजी महाराज मल्लिकार्जुन के दर्शन को आए थे इस दर्शन को यादगार बनाने के लिए शिवजी महाराज का पुतला बनाया गया है।
श्रीशैलम थंड हवा का गंतव्य है, श्रीशैलम के निचे के भाग से बहते हुए कृष्णा को '' पातालगंगा '' के नाम से पहचानते है।
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