भारत के स्वातंत्रा संग्राम में बलिदान देंवेवाले महान क्रांतिवीरों को मेरा जय हिन्द। स्वातंत्रता संग्राम में भाग लेनेवाले बहुत भारतीय क्रांतिकारी थे उनमे से ही '' नेताजी सुभाष चंद्रबोस '' है। स्कुल पढ़ते समय ही, उनके मन में देश प्रेम का जस्बा खौलने लगा। भारत से गुलामगिरी खत्म करना चाहते थे। बी.ए.की पढ़ाई होने के बाद लन्दन गए। आय.सी.एस परीक्षा पास हुए। इंग्रज सरकार ने उन्हें ज्यादा पगार की नोकरी दी लेकिन नोकरी का राजीनामा दिया। मातृभूमि की सेवा और गुलामगिरी से मुक्त करने के लिए भारत में आये।
∎ शहीद भगतसिंग विजय गाथा
∎ लोकमान्य तिलक विजय गाथा
∎ राजर्षि शाहू महाराज विजय गाथा
नेताजी सुभाष चंद्रबोस भारत में आने के बाद गांधीजी से मिले। सुभाषबाबू ने '' स्वंसेवक '' दल की स्थापना की। उन्हें देश की आझादी के लिए सैनिक तयार करना था। महात्मा गाँधी सत्य, अहिंसा और असहकार के मार्ग पर अपनी लड़ाई लढते थे। सुभाषबाबू ने चिंतरंजन दास को अपना राजनैतिक गुरु बनाया। कलकत्ता में नगराध्यक्ष बने, नगरपालिका का कार्यभार देखे। इंग्रज सरकार की नजर सुभाषबाबू पर थी। एक दिन उन्हें पकड़ कर जैल में दो साल के लिए बंद किया। उनकी तबियत ख़राब हुई दवा करने के लिए यूरोप गए।
▪️ संत गाडगेबाबा की जीवनी
▪️ दादाभाई नौरोजी की जीवनी
नेताजी सुभाषचंद्र बोस का परिचय | Introduction to Netaji Subhash Chandra Bose
- नाम : सुभाषचंद्र जानकीनाथ बोस
- जन्म दि : २३ जनवरी 1897
- जन्म स्थान : कटक (ओरिसा)
- पिताजी का नाम : जानकीनाथ
- माताजी का नाम : प्रभावतीदेवी
- शिक्षण : 1919 बी.ए, 1920 आय. सी. एस. परीक्षा पास
▪️ राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज की जीवनी
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के कार्य | Works of Netaji Subhash Chandra Bose
1933 को बर्लिन में सुभासबाबू ने अडॉल्फ हिटलर और बेनिटो मुसोलिनी से मुलाखत किये। 1936 को आयरलैंड को जाकर आयरिश जनता को आझादी का संदेश दिया। सुभाषबाबू 1938 को भारत लौट आये। हीरापुर में कांग्रेस अधिवेश के अध्यक्ष थे। 1939 में सुभाषचंद्र बोस कॉंग्रेश के अध्यक्ष बने। लेकिन महात्मा गाँधी और सुभाषबाबू के मतैक्य नहीं हुये और 1940 को कलकत्ता में अपने अध्यक्षपद का राजीनामा दिया और अपना एक स्वतंत्र पक्ष '' फॉरवर्ड ब्लॉक '' स्थापन किया। स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने सुभाषबाबू की मुलाखत ली। '' फॉरवर्ड ब्लॉक '' इस मासिक में ब्रिटिशों के खिलाप लेख लिखे थे इसलिए उन्हें जैल में बंद कर कीये।1940 में जैल में उन्होने अन्नत्याग किया। उनकी तबियत बिघड गई ब्रिटिश सरकार घबरागई उन्हें नजर कैद में रखा गया।
▪️ महात्मा फुले की जीवनी
▪️ शिवाजी महाराज की जीवनी
सुभाषचंद्र बोस का भेस बदलना | subhash chandrabose ka bhes badalana
सुभाषबाबू को छत्रपति शिवाजी महाराज की युक्ति याद आई ओरंगजेब के आगरा से शिवाजी महाराज फरार हुए थे। उन्होंने तबियत खराब का बहाना किया और सन्यास लिया, मिलनाजुलना बंद किया। हिमालय में जाऊंगा ऎसी अफवाह किया। दाढ़ी बढ़ाई दरवाजा बंद किया, कफनी पहनी और नजरकैद का पहारा कम हुआ। सुभाषबाबू नजरकैद से मौलवी का भेस बदल के बहार निकले नाम झियाउद्दीन पठान दिया गया था। मास्को, इटली और जर्मनी चले गए।▪️ संत ज्ञानेश्वर की जीवनी
▪️ डॉ.ए.पि.जे अब्दुल कलाम की जीवनी
द्वितीय विश्व युद्ध शुरू | Second World War Begins
हिटलर के पास 1500 हिंदी सैनिक कैद थे हिटलर ने सभी कैदियों को छोड़ दिया। सुभाषबाबू ने ''आझाद हिन्द सेना'' तैयार किये। हिटलर और सुभाषबाबू एक साथ आये और सुभाषबाबू के पास 12,000 /- सैनिक तैयार हुए।
नेताजी सुभाष चंद्रबोस कहते थे , '' तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दुँगा। '' हिटलर प्रति माह 800 पौंड और आगे 3200 पौंड रककम देने लगा। '' जय हिंद '' की नारेबाजी होने लगी। शेर के चिन्ह का ध्वज बनाया गया। जपान, मलाया, सिंगापूर आदि से आझाद हिन्द सेना तयार की गई। रासबिहारी बोस ने सुभासबाबू को जपान को बुलाये। सुमात्रा, इंडोनेशिया, ब्रम्हदेश, मलाया यहाँ पर तीन लाख सैनिक थे। '' चलो दिल्ली '' की गर्जना हुई।
'' रानी ऑफ़ झाशी रेजिमेंट '' की स्थापना हुई। इस पथक के कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन थे। इस पथक में 156 बन्दुकधारी महिला सैनिक थी। '' कदम कदम बढ़ाये जा '' इस गीत के साथ आगे बढ़ते गए।
04 फरवरी 1944, भारत ब्रम्हदेश सिमा पर युद्ध चालू हुआ। आसाम, कोहिमा आदि तक सैन्य पहुँचे। '' रानी झाशी ऑफ़ रेजीमेंटन '' पथक ने 15 से 16 घंटे लढ़ते रहे। और अंदमान-निकोबार द्वीप पर विजय प्राप्त किये। अमेरिका ने जपान के हिरोशिमा और नागासाकी शहर पर बॉम्ब डाले। जपान ने आत्मसमर्पण किया। 24 अप्रैल को सुभासबाबू ने रंगून छोड़ा। आझाद हिन्द सैना को पीछे हटना पड़ा। जर्मनी द्वितीय विश्व युद्ध में पराभूत हुई।
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु | Death of Subhash Chandra Bose
पुरस्कार | Award
भारत सरकार ने 1992 में सुभाषचंद्र बोस को '' भारतरत्न '' यह सर्वोच्च पुरस्कार जाहिर किया था। लेकिन उनके परिवार ने स्वीकार नहीं किया।
यह भी जरुर पढ़े